Saturday, March 29, 2025

NEP 2020 का सारांश point wise लिखे

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) का सारांश

1. स्कूली शिक्षा में सुधार

नई संरचना (5+3+3+4): पारंपरिक 10+2 प्रणाली के स्थान पर 5+3+3+4 प्रणाली लागू।

मल्टी-लेवल प्ले-बेस्ड लर्निंग: प्री-प्राइमरी से ही एक्टिव लर्निंग पर ज़ोर।

सभी के लिए शिक्षा: 2030 तक 100% GER (सकल नामांकन अनुपात) प्राप्त करने का लक्ष्य।

मातृभाषा में शिक्षा: कक्षा 5 तक (संभावित रूप से 8वीं तक) मातृभाषा/स्थानीय भाषा में पढ़ाई की सिफारिश।

कोडिंग और व्यावसायिक शिक्षा: कक्षा 6 से कोडिंग और व्यावसायिक शिक्षा प्रारंभ।


2. उच्च शिक्षा में सुधार

बहु-विषयक संस्थान: 2040 तक सभी कॉलेज और विश्वविद्यालय बहु-विषयक बनेंगे।

चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम: स्नातक पाठ्यक्रम 4-वर्षीय होगा, एक से अधिक एग्जिट विकल्प के साथ।

शिक्षा में लचीलापन: क्रेडिट बैंक प्रणाली के माध्यम से कोर्स ब्रेक लेने और फिर से शुरू करने की सुविधा।

राष्ट्रीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI): उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और नियमन के लिए एकल नियामक निकाय।


3. शिक्षक शिक्षा और प्रशिक्षण

B.Ed अनिवार्य: 2030 तक सभी शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यता 4-वर्षीय B.Ed होगी।

नियमित शिक्षक प्रशिक्षण: शिक्षकों के लिए नई शिक्षा पद्धतियों और तकनीकों का प्रशिक्षण आवश्यक।


4. प्रौद्योगिकी और डिजिटल शिक्षा

राष्ट्रीय डिजिटल शिक्षा मंच (DIKSHA): डिजिटल संसाधनों का विस्तार।

ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा: वर्चुअल लैब्स और डिजिटल शिक्षा सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी।


5. व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास

कक्षा 6 से व्यावसायिक शिक्षा: बच्चों को कौशल आधारित शिक्षा दी जाएगी।

इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप: छात्रों को उद्योगों में प्रशिक्षण का अवसर मिलेगा।


6. परीक्षा प्रणाली में सुधार

वार्षिक परीक्षा के बजाय सतत मूल्यांकन: केवल रटने के बजाय ज्ञान और कौशल पर जोर।

बोर्ड परीक्षाओं को आसान बनाया जाएगा: छात्रों की समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता पर ध्यान दिया जाएगा।


7. भाषा और संस्कृति को बढ़ावा

तीन-भाषा सूत्र: छात्रों को तीन भाषाएँ सीखने का अवसर।

भारतीय भाषाओं का संरक्षण: संस्कृत और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा मिलेगा।


8. अनुसंधान और नवाचार

राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (NRF): अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए एक नई संस्था।


9. शिक्षा में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का सहयोग

सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों में समान मानक सुनिश्चित किए जाएंगे।


10. कार्यान्वयन और निगरानी

NEP 2020 का चरणबद्ध कार्यान्वयन: केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा नीति को लागू करने के लिए योजनाएँ बनाई जाएंगी।


निष्कर्ष:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य समावेशी, बहु-विषयक और कौशल उन्मुख शिक्षा प्रणाली तैयार करना है, जिससे भारत को वैश्विक ज्ञान केंद्र बनाया जा सके।

समावेशी, बहु-विषयक और कौशल उन्मुख शिक्षा प्रणाली को समझाए

समावेशी, बहु-विषयक और कौशल उन्मुख शिक्षा प्रणाली का अर्थ एवं महत्व

1. समावेशी शिक्षा प्रणाली (Inclusive Education System)

समावेशी शिक्षा का तात्पर्य ऐसी शिक्षा प्रणाली से है जो सभी छात्रों को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर प्रदान करती है, चाहे वे किसी भी सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक या बौद्धिक पृष्ठभूमि से हों।

विशेषताएँ:

वंचित वर्गों को प्राथमिकता: अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), दिव्यांगजन (PWD), लड़कियाँ और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए विशेष योजनाएँ।

सुगम्य शिक्षा: भौतिक एवं डिजिटल संसाधनों को सभी के लिए सुलभ बनाना।

संवेदनशील शिक्षक प्रशिक्षण: शिक्षकों को समावेशी शिक्षा देने के लिए प्रशिक्षित किया जाना।

बहुभाषी शिक्षा: स्थानीय भाषा या मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध कराना ताकि कोई भी बच्चा भाषा की बाधा के कारण पीछे न रहे।



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2. बहु-विषयक शिक्षा प्रणाली (Multidisciplinary Education System)

बहु-विषयक शिक्षा प्रणाली वह व्यवस्था है जिसमें छात्र केवल एक विषय तक सीमित न रहकर विभिन्न विषयों का अध्ययन कर सकते हैं, जिससे उनकी समझ व्यापक और व्यावहारिक बनती है।

विशेषताएँ:

विषय चुनने की स्वतंत्रता: विज्ञान, कला और वाणिज्य के बीच की दीवार को हटाकर छात्र अपनी रुचि के अनुसार विषय चुन सकते हैं।

समग्र विकास: छात्रों को केवल अकादमिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि नैतिक, मानसिक, रचनात्मक और सामाजिक कौशल भी विकसित करने के अवसर मिलते हैं।

अनुशासन के बीच सामंजस्य: जैसे एक छात्र गणित और संगीत दोनों पढ़ सकता है, जिससे उसकी तार्किक और रचनात्मक क्षमताएँ दोनों विकसित होती हैं।

शोध और नवाचार पर जोर: छात्रों को प्रयोगात्मक और व्यावहारिक शिक्षा के माध्यम से समस्याओं का समाधान करने की प्रेरणा दी जाती है।



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3. कौशल उन्मुख शिक्षा प्रणाली (Skill-Based Education System)

कौशल उन्मुख शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को पारंपरिक रटने की प्रणाली से बाहर निकालकर उन्हें वास्तविक जीवन में उपयोगी व्यावसायिक एवं तकनीकी कौशल प्रदान करना है, जिससे वे रोजगार के लिए तैयार हो सकें।

विशेषताएँ:

व्यावसायिक शिक्षा: कक्षा 6 से ही छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देना, जैसे—कोडिंग, बढ़ईगिरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, खेती, डिजिटल मार्केटिंग आदि।

इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप: छात्रों को उद्योगों और कंपनियों में काम करने का अनुभव देना।

नई तकनीकों का प्रशिक्षण: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML), साइबर सुरक्षा, डाटा एनालिटिक्स, रोबोटिक्स आदि का ज्ञान देना।

संकायों में लचीलापन: छात्र अपनी रुचि के अनुसार विषय और पाठ्यक्रम बदल सकते हैं।



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निष्कर्ष

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि शिक्षा समावेशी (Inclusive), बहु-विषयक (Multidisciplinary) और कौशल आधारित (Skill-Oriented) हो। इससे छात्रों को व्यापक ज्ञान, व्यावहारिक अनुभव और रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे, जिससे वे न केवल आत्मनिर्भर बनेंगे बल्कि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी योगदान देंगे।

पाठ योजना से संबंधित 15 प्रशं

पाठ योजना से संबंधित 15 प्रश्नों के उत्तर

1. पाठ योजना क्या है?

पाठ योजना (Lesson Plan) एक सुव्यवस्थित रूपरेखा है, जिसमें शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए लक्ष्यों, विधियों और गतिविधियों का विवरण होता है।


2. प्रभावी पाठ योजना की विशेषताएँ क्या हैं?

स्पष्ट शिक्षण उद्देश्य

छात्र केंद्रित गतिविधियाँ

शिक्षण सहायक सामग्री का उपयोग

लचीलापन और समय प्रबंधन

मूल्यांकन की रणनीति


3. पाठ योजना के मुख्य घटक कौन-कौन से होते हैं?

पाठ का शीर्षक

शिक्षण उद्देश्य

पूर्व ज्ञान का आकलन

शिक्षण विधियाँ और गतिविधियाँ

शिक्षण सामग्री और संसाधन

मूल्यांकन प्रक्रिया


4. पाठ योजना कितने प्रकार की होती है?

दैनिक पाठ योजना: प्रतिदिन पढ़ाए जाने वाले विषयों के लिए।

साप्ताहिक पाठ योजना: एक सप्ताह की शिक्षण रूपरेखा।

इकाई पाठ योजना: संपूर्ण अध्याय या इकाई के लिए।

वार्षिक पाठ योजना: पूरे शैक्षणिक वर्ष के लिए।


5. दैनिक पाठ योजना और इकाई पाठ योजना में क्या अंतर है?

6. एक प्रभावी पाठ योजना बनाने के लिए किन कारकों को ध्यान में रखा जाता है?

छात्रों की शैक्षिक क्षमता

विषयवस्तु की जटिलता

उपलब्ध शिक्षण संसाधन

कक्षा का समय प्रबंधन

मूल्यांकन की पद्धति


7. पाठ योजना का शिक्षण में क्या महत्व है?

शिक्षण को संगठित और प्रभावी बनाती है।

शिक्षकों को पढ़ाने में आत्मविश्वास मिलता है।

छात्रों की सहभागिता बढ़ती है।

शिक्षण उद्देश्यों की पूर्ति होती है।


8. पाठ योजना बनाते समय शिक्षकों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

पाठ योजना में लचीलापन बनाए रखना।

समय प्रबंधन की समस्या।

विविध छात्रों की आवश्यकता को पूरा करना।

पर्याप्त शिक्षण संसाधनों की अनुपलब्धता।


9. पाठ योजना और पाठ्यक्रम (Curriculum) में क्या अंतर है?

10. प्राथमिक स्तर और माध्यमिक स्तर की पाठ योजना में क्या अंतर होता है?

प्राथमिक स्तर पर अधिक चित्र, खेल और गतिविधियाँ होती हैं।

माध्यमिक स्तर पर विषय अधिक जटिल और विश्लेषणात्मक होते हैं।

प्राथमिक स्तर पर मूल्यांकन मौखिक और सरल होता है, जबकि माध्यमिक स्तर पर लिखित और गहराई से किया जाता है।


11. शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में पाठ योजना की क्या भूमिका है?

यह सुनिश्चित करती है कि शिक्षण लक्ष्यों की पूर्ति हो।

शिक्षकों को सही दिशा में पढ़ाने में मदद मिलती है।

छात्रों की सहभागिता और समझ को बेहतर बनाती है।


12. पाठ योजना में शिक्षण विधियों का चयन कैसे किया जाता है?

विषय और छात्रों की समझ के स्तर के अनुसार।

उपलब्ध संसाधनों और समय को ध्यान में रखते हुए।

शिक्षण उद्देश्यों और अपेक्षित परिणामों के आधार पर।


13. पाठ योजना में मूल्यांकन (Assessment) का क्या महत्व है?

यह छात्रों की सीखने की प्रगति को मापने में मदद करता है।

शिक्षकों को यह समझने में सहायता मिलती है कि पाठ प्रभावी रहा या नहीं।

छात्रों की कमजोरियों को पहचानकर सुधार के उपाय किए जा सकते हैं।


14. एक सफल पाठ योजना के लिए शिक्षण सहायक सामग्री (Teaching Aids) की क्या भूमिका होती है?

छात्रों की रुचि और समझ को बढ़ाने में सहायक।

अवधारणाओं को स्पष्ट करने में मददगार।

दृश्य, श्रव्य और स्पर्श आधारित सामग्री का उपयोग सीखने को प्रभावी बनाता है।


15. एक आदर्श पाठ योजना का प्रारूप (Format) कैसा होना चाहिए?

1. शीर्षक: अध्याय का नाम।


2. शिक्षण उद्देश्य: छात्रों को क्या सीखना है।


3. पूर्व ज्ञान: छात्रों की मौजूदा जानकारी।


4. शिक्षण विधियाँ: व्याख्यान, चर्चा, प्रयोग, आदि।


5. शिक्षण सामग्री: पाठ्यपुस्तक, मॉडल, चार्ट, आदि।


6. गतिविधियाँ: छात्रों की सहभागिता बढ़ाने के लिए क्रियाकलाप।


7. मूल्यांकन: परीक्षण, प्रश्नोत्तर, गृहकार्य, आदि।


8. समाप्ति: संक्षिप्त पुनरावलोकन और गृहकार्य।



निष्कर्ष:

पाठ योजना शिक्षण को प्रभावी, संगठित और उद्देश्यपूर्ण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह न केवल शिक्षकों के लिए मार्गदर्शिका होती है, बल्कि छात्रों के लिए भी सीखने की एक स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत करती है।


मिशन प्रेरणा का विस्तार से वर्णन #dmsambhal #basiceducation

मिशन प्रेरणा: उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा सुधार की पहल

मिशन प्रेरणा उत्तर प्रदेश सरकार की एक प्रमुख शिक्षा सुधार पहल है, जिसका उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा में सीखने के स्तर (Learning Outcomes) में सुधार करना है। इस मिशन की शुरुआत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा 2020 में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों की बुनियादी साक्षरता (Foundational Literacy) और संख्यात्मक दक्षता (Numeracy) को बढ़ाना है, जिससे वे भविष्य की पढ़ाई के लिए मजबूत नींव तैयार कर सकें।


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मिशन प्रेरणा का उद्देश्य

मिशन प्रेरणा का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि ग्रेड 1 से 3 के सभी बच्चे
✔️ पढ़ने, समझने, और लिखने की क्षमता विकसित करें।
✔️ बुनियादी गणितीय गणना (संख्यात्मक दक्षता) सीखें।
✔️ सीखने में रुचि लें और आत्मविश्वास के साथ शिक्षा ग्रहण करें।

यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमेरेसी (FLN) मिशन के अनुरूप है।


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मिशन प्रेरणा के प्रमुख घटक

1. फाउंडेशनल लर्निंग (बुनियादी शिक्षा)

कक्षा 1 से 3 के बच्चों को पढ़ने, लिखने और गणना करने में दक्ष बनाना।

खेल-आधारित और गतिविधि-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देना।

‘निपुण भारत मिशन’ के तहत बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को सरल बनाना।


2. प्रेरणा तालिका (Prerna Table)

यह एक सीखने के परिणामों (Learning Outcomes) को मापने की रूपरेखा है।

बच्चों को पढ़ने, लिखने, और गणित की मौलिक समझ में दक्ष बनाने के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किए गए।


3. प्रेरणा ज्ञानोत्सव (Prerna Gyanotsav)

छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को जागरूक करने के लिए शिक्षा पर्व मनाया जाता है।

विद्यालयों में पढ़ाई का माहौल सुधारने और अभिभावकों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर।


4. प्रेरणा लक्ष्य (Prerna Lakshya)

प्रत्येक बच्चे को तीसरी कक्षा तक मूलभूत पढ़ाई और गणितीय समझ में पारंगत बनाना।

‘हर घर प्रेरणा’ अभियान के तहत अभिभावकों को भी शिक्षण प्रक्रिया में जोड़ना।


5. प्रेरणा साथी (Prerna Sathi - डिजिटल शिक्षा)

ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रेरणा साथी पोर्टल और मोबाइल ऐप का उपयोग।

शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए डिजिटल संसाधन उपलब्ध कराना।


6. प्रेरणा संवाद (Prerna Samvad)

शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों के बीच सकारात्मक संवाद और भागीदारी बढ़ाना।

शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए फीडबैक सिस्टम तैयार करना।



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मिशन प्रेरणा के तहत लागू योजनाएँ

1. निपुण भारत मिशन (NIPUN Bharat Mission) – FLN (Foundational Literacy and Numeracy) को मजबूत करने की योजना।


2. ई-पाठशाला और प्रेरणा साथी पोर्टल – ऑनलाइन लर्निंग और डिजिटल कंटेंट।


3. विद्यालय कायाकल्प योजना – स्कूलों के बुनियादी ढांचे का विकास।


4. बाल वाटिका कार्यक्रम – प्री-प्राइमरी कक्षाओं के लिए गतिविधि-आधारित शिक्षा।




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मिशन प्रेरणा की उपलब्धियाँ

✔️ उत्तर प्रदेश के 1.5 लाख से अधिक प्राथमिक विद्यालयों में लागू किया गया।
✔️ 90 लाख से अधिक बच्चों की पढ़ाई की गुणवत्ता में सुधार आया।
✔️ अभिभावकों और शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हुई।
✔️ शिक्षकों के लिए डिजिटल ट्रेनिंग मॉड्यूल तैयार किए गए।


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निष्कर्ष

मिशन प्रेरणा, उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। यह बच्चों को मजबूत बुनियादी शिक्षा देने, शिक्षकों की प्रशिक्षण गुणवत्ता सुधारने और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक कार्यक्रम है। NEP 2020 के लक्ष्यों को पूरा करने में यह मिशन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर के लिए उपयुक्त गणित की pedagogy क्या है ? @dmsambhal

प्राथमिक (कक्षा 1-5) और उच्च प्राथमिक (कक्षा 6-8) स्तर के लिए गणित की उपयुक्त शैक्षणिक विधियाँ (Pedagogy)

गणित पढ़ाने के लिए उचित शैक्षणिक विधि (Pedagogy) अपनाना आवश्यक है ताकि बच्चों की समझ, तर्क शक्ति, और समस्या समाधान कौशल विकसित किया जा सके। NEP 2020 और निपुण भारत मिशन के तहत, गणित की शिक्षा को रोचक, व्यावहारिक और अनुभव आधारित बनाने पर जोर दिया गया है।


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1. प्राथमिक स्तर (कक्षा 1-5) के लिए गणित की उपयुक्त शैक्षणिक विधियाँ

प्राथमिक स्तर पर बच्चों की संख्यात्मक अवधारणाएँ (Number Sense), बुनियादी गणनाएँ (Basic Arithmetic) और तार्किक सोच (Logical Thinking) विकसित करना महत्वपूर्ण होता है।

(A) अनुभव-आधारित अधिगम (Experiential Learning)

✅ सीखने को रोजमर्रा की गतिविधियों से जोड़ना (जैसे – बाजार में खरीदारी के दौरान जोड़-घटाव सिखाना)।
✅ खेल और गतिविधियों का उपयोग (जैसे – गणितीय पहेलियाँ, फ्लैश कार्ड, रंगीन ब्लॉक्स)।
✅ मन में गणना (Mental Math) विकसित करने के लिए संख्याओं के पैटर्न सिखाना।

(B) ठोस-सार-निरूपण विधि (Concrete-Pictorial-Abstract Method - CPA Approach)

✅ Concrete (ठोस) – पहले बच्चों को वस्तुओं (Counters, Blocks, Beads) से जोड़-घटाव सिखाया जाए।
✅ Pictorial (चित्रात्मक) – इसके बाद चित्रों और आकृतियों के माध्यम से अवधारणाएँ समझाई जाएँ।
✅ Abstract (निरूपणात्मक) – अंत में सांकेतिक (संख्याओं और प्रतीकों) गणित सिखाया जाए।

(C) खेल-आधारित शिक्षण (Play-Based Learning)

✅ गणितीय खेलों (Math Games) का उपयोग – साँप-सीढ़ी, अबेकस, डोमिनोज़, कार्ड गेम।
✅ शारीरिक गतिविधियों का समावेश – उदाहरण: कक्षा में गणना के लिए तालियाँ बजाना या उछल-कूद के साथ गणितीय क्रियाएँ करना।

(D) संवाद और अन्वेषण (Discussion & Exploration)

✅ बच्चों को खुली चर्चा में शामिल करना, ताकि वे अपने विचारों को व्यक्त कर सकें।
✅ ‘क्यों’ और ‘कैसे’ प्रकार के प्रश्न पूछकर उनकी तार्किक क्षमता विकसित करना।

(E) बहु-इंद्रिय विधि (Multi-Sensory Approach)

✅ श्रवण (Listening), दृष्टि (Visual), और स्पर्श (Touch) को जोड़कर गणित पढ़ाना।
✅ जैसे – रेत पर संख्याएँ बनवाना, गणितीय कहानियाँ सुनाना, हाथों से गिनती कराना।


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2. उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6-8) के लिए गणित की उपयुक्त शैक्षणिक विधियाँ

उच्च प्राथमिक स्तर पर गणितीय संकल्पनाएँ (Mathematical Concepts) अधिक अमूर्त (Abstract) और जटिल (Complex) हो जाती हैं। इसलिए, शिक्षण विधियाँ अधिक विश्लेषणात्मक, तार्किक और समस्या-समाधान आधारित (Problem-Solving Oriented) होनी चाहिए।

(A) खोज-आधारित अधिगम (Inquiry-Based Learning)

✅ बच्चों को समस्याएँ हल करने के लिए प्रेरित करना।
✅ उदाहरण: “अगर कोई संख्या 3 से विभाज्य है, तो वह 6 से क्यों विभाज्य नहीं हो सकती?”

(B) प्रयोग आधारित गणित (Hands-On Learning & Manipulatives)

✅ ज्यामिति सिखाने के लिए रचनात्मक गतिविधियाँ (जैसे – ज्यामितीय आकृतियों के मॉडल बनाना)।
✅ बीजगणित सिखाने के लिए वास्तविक जीवन के उदाहरणों का उपयोग (जैसे – पैटर्न, समीकरण, और ग्राफ़ बनाना)।

(C) दृश्य-आधारित शिक्षण (Visual Learning)

✅ गणितीय अवधारणाओं को चित्रों, ग्राफ़, चार्ट और डायग्राम से समझाना।
✅ उदाहरण: भिन्न (Fractions) को टेबल पर कागज़ काटकर समझाना।

(D) सहकारी अधिगम (Collaborative Learning)

✅ समूह में बच्चों को कार्य करने देना, ताकि वे आपस में चर्चा करके समाधान खोजें।
✅ उदाहरण: छात्रों को समूहों में विभाजित करके ‘समस्या-समाधान प्रतियोगिता’ कराना।

(E) वास्तविक जीवन से जोड़ना (Connecting Math to Real-Life Situations)

✅ प्रतिशत, अनुपात, और औसत को ‘बैंकिंग, खरीदारी, खेल’ से जोड़ना।
✅ बीजगणित और ज्यामिति को वास्तुकला, इंजीनियरिंग और ग्राफिक्स से जोड़कर समझाना।


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3. गणित सिखाने में आम चुनौतियाँ और समाधान


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4. निष्कर्ष

गणित पढ़ाने की सही विधि (Pedagogy) का चयन करने से बच्चों में गणितीय तर्क शक्ति, समस्या समाधान कौशल और रचनात्मक सोच विकसित होती है। प्राथमिक स्तर पर खेल-आधारित और गतिविधि-आधारित शिक्षण आवश्यक है, जबकि उच्च प्राथमिक स्तर पर विश्लेषणात्मक और समस्या-समाधान आधारित विधियाँ उपयुक्त होती हैं। NEP 2020 और निपुण भारत मिशन ने इन पद्धतियों को अपनाने पर विशेष जोर दिया है, ताकि गणित शिक्षा को सरल, रोचक और प्रभावी बनाया जा सके।

Wednesday, March 26, 2025

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला* *शिक्षा का पात्र कौन* ? *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल )*

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला*  
 *शिक्षा का पात्र कौन* ?
 *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल )* 
सर्दी का समय था। आकाश में बादल मंडरा रहे थे। झिरमिर - झिरमिर बूँदें गिर रही थी। बिजलियाँ चमक रही थीं। हवा का वेग बढ़ रहा था। ऐसे खराब मौसम में कोई भी मनुष्य घर से बाहर निकलना नहीं चाहता था। पशु भी अपने - अपने स्थान पर सिकुड़े बैठे हुए थे। एक बया अपने घोंसले में बैठा था। उस समय एक बन्दर सर्दी से ठिठुरता हुआ इधर उधर दौड़ रहा था। किसी शरण की खोज में था। बया ने सर्दी से पीड़ित बन्दर को देखा और मुस्कुराता हुआ बोली -
तब कला विपुला प्रतिवर्तते, 
तब बपुश्च जनेन समं कपे। 
मनसि चित्रमशेषमिहास्ति मे, 
किमु न यत् कुरुषे निजमन्दिरम्।।
हे बन्दर । मनुष्य के समान तेरी आकृति है। तू बड़ा होशियार भी है। तथापि तू अपने रहने के लिए कोई सुरक्षित स्थान क्यों नहीं बना रहा है, इस बात का मुझे बड़ा आश्चर्य है। मैं एक छोटा सा अज्ञानी प्राणी हूँ, फिर भी घोड़ा - सा ज्ञान तो अवश्य ही रखता हूँ। मैं अपना घर बनाकर बड़े आनन्द से बैठा हूँ। यदि तू भी घर बना लेता तो आज इस कड़कड़ाती सर्दी में क्यों इधर - उधर भटकना पड़ता, क्यों शरीर ठिठुरता।बया की यह हित - शिक्षा बन्दर को रुचिकर नहीं लगी। मन ही मन कुडकुड़ाने लगा-हाय । यह छोटा तुच्छ प्राणी मुझे उपदेश दे रहा है। शिक्षा सुना रहा है। इसने मेरा अपमान किया है। इस अपमान को में सह नहीं सकता। बया के घोंसले को देखा और वह उछला। एक क्षण में बया के घर को तोड़कर वृक्ष पर जा बैठा। अभिमानपूर्वक वह बोला- बया! तूने मेरी करतूत देखी। मैं कितना कला - निपुण और शक्तिशाली बन्दर हूँ। मेरे सामने तेरी क्या शक्ति है ? बया बेचारा आंखें मलता हुआ बोला- कुपात्र को कभी भी हितशिक्षा नहीं देनी चाहिए। अगर मैं मौन रहता तो आज यह दुष्परिणाम क्यों भोगना पड़ता है |
विवेकशील व्यक्ति पात्र - अपात्र को देखकर ही उपदेश देते हैं। अपात्र को दिया हुआ उपदेश नुकसान करता है। अतः योग्यायोग्य की परीक्षा अवश्य ही करनी चाहिए।
शिक्षा देना योग्य को, 
करके हृदय विचार। 
'मुनि कन्हैया' अन्यथा, 
होगा अमित बिगाड़।।
         *आभार* 
 *पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट* 
       *अहमदाबाद*

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला* *आत्म - स्वरूप का ज्ञान* *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला* 
 *आत्म - स्वरूप का ज्ञान* 
 *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )
एक गर्भवती सिंहनी थी। वह अपनी क्षुधा को शान्त करने के लिए शिकार की खोज में जंगल में इधर उधर भटक रही थी। उसने दूर से भेड़ों के एक झुण्ड को चरते देखा। उन पर आक्रमण किया। ज्यों ही छलांग मारी त्यों ही उसके प्राण पखेरू उड़ गये। मातृविहीन बच्चे का जन्म हुआ। भेड़ें उस बच्चे की सार - संभाल में जुट गयीं। भेड़ों के बच्चों के साथ वह सिंह - शिशु बड़ा होने लगा। हर क्रिया भेड़ों की भाँति करने लगा। घास - पात खाकर रहने लगा। भेड़ों से मैं - मैं करना भी सीख लिया। कुछ ही समय पश्चात् वह एक बलिष्ठ सिंह जैसा बलवान बन गया, फिर भी वह अपने आपको भेड़ ही समझता था और उन सब में ही अपना जीवन यापन कर रहा था| उसी जंगल में एक दिन एक सिंह शिकार हेतु आ पहुँचा। उसने उस भेड़ सिंह को देखा। आश्चर्य हुआ भेड़ों के बीच यह सिंह कहाँ से आ गया। उसे यह 'तू भेड़ नहीं, सिंह है' समझाने के लिए ज्यों ही वह आगे बढ़ा त्यों ही भेड़ों का झुण्ड दौड़ने लगा और साथ साथ वह भेड़ सिहं भी। परन्तु उस सिंह ने उस भेड़ - सिंह को अपने यथार्थ स्वरूप का भान कराने के लिए प्रयास नहीं छोड़ा। वह सब कुछ देखता रहा कि यह भेड़ - सिंह कहाँ रहता है, कहाँ सोता है, क्या करता है। एक दिन उसे अकेला देखकर वह छलांग मारकर उसके पास जा पहुँचा और बोला - अरे ! तू भेड़ों के साथ रहकर अपने यथार्थ स्वरूप को कैसे भूल गया ? तू भेड़ नहीं है, तू तो सिंह है। इन भेड़ों के बीच रहकर अपने जीवन को क्यों नष्ट कर रहा है? भेड़ - सिंह ने कहा- मैं तो भेड़ हूँ, सिंह कैसे कहला सकता हूँ? मैं आपका कहना कभी भी मानने वाला नहीं हूँ, चाहे आप कितना भी प्रयत्न करें। यों कहकर वह भेड़ों की भाँति मिमियाने लगा। कुछ ही देर बाद उस सिंह ने भेड़ सिंह को उठाकर किसी तालाब के किनारे ले जाकर कहा, 'अब देख पानी में, जैसा प्रतिबिम्ब मेरा पड़ रहा है वैसा ही प्रतिबिम्ब तेरा है। तेरा और मेरा आकार समान है। अपने सही रूप को भूल रहा है। अब वह अपने प्रतिबिम्ब को देखने लगा। स्वयं के आकार का सही आभास होते ही वह सिंह की तरह गरजने लगा।हर इन्सान में अनन्त शक्ति है। उस शक्ति का दर्शन ही आत्म - दर्शन है।  जब तक मानव उसका दर्शन नहीं कर पाता तब तक वह अपने आपको भेड़ - सिंह की भाँति कमजोर और निर्बल समझता है। पर ज्यों ही उसे आत्म - रूप का ज्ञान हो जायेगा, वह सहजानन्द में रमण करने लग जायेगा।
जब तक आत्मा को नहीं, 
आत्म-रूप का भान।
 तब तक वह पर - द्रव्य में, 
करती रमण महान।।
           *आभार* 
 *पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट*   
       ** *अहमदाबाद*

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला* *चण्डकौशिक* *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला*    *चण्डकौशिक* 
 *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )
भगवान महावीर जब श्वेताम्बिक्रा नगरी की ओर प्रस्थान कर रहे थे तब मार्गस्थ लोगों ने कहा - भगवन् ! आप इधर न पधारें। मार्ग में एक भयंकर जहरीला चण्डकौशिक सर्प रहता है। जो भी व्यक्ति इस मार्ग से गुजरता है, उसे वह डस जाता है। सैकड़ों व्यक्ति परलोकगामी बन गये। अब इस मार्ग से कोई भी व्यक्ति आना - जाना नहीं चाहता है। अतः आप भी इस पथ से न पधारें। किन्तु भगवान महावीर उपसर्गों से कब विचलित होने वाले थे ! भय और डर से कब वे पराजित होने वाले थे ! उन्होंने अपना पूर्व निश्चित मार्ग न बदला, मन्द गति से चलते रहे। चण्डकौशिक सर्प की बांबी आयी। भगवान ध्यानस्थ खड़े हो गए। उसने विष छोड़ा। भगवान के पैर के अंगूठे को डसा। उसके जहर का उनके शरीर पर कोई प्रभाव न हुआ। तब फिर उसने उनके कंधों पर चढ़कर कंधों को डसा। फिर भी कोई असर नहीं। भगवान ज्यों के त्यों मेरु की भाँति ध्यान-मुद्रा में लीन रहे। उसे उनका रुधिर बहुत स्वादिष्ट लगा। वह उसे पीने लगा। मन - ही - मन जिज्ञासा जागृत हुई कि क्या कारण है, मेरे विष का इन पर कोई असर नहीं हुआ ? चिंतन, मनन, ऊहापोह करते ही उसे जाति स्मरण ज्ञान हो गया।
ये तो चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर हैं।' झट उनके शरीर से नीचे उत्तरा। उनके चरणों में लोटने लगा। पूर्वभव देखते ही वह दुःख करने लगा, हाय ! साधु जीवन में मैंने गुस्सा किया जिससे मुझे तिर्यञ्चगति में आना पड़ा। अब उसे उन क्रोधजनित कुत्सित कार्यों का भी स्मरण हुआ। उनकी आलोचना व गर्हा करता हुआ शरीर की ममता छोड़कर अनशनपूर्वक वह बांबी में रहने लगा। भगवान महावीर वहाँ से चले। लोगों ने देखा। आश्चर्य हुआ। यह क्या बात, सर्प ने इन्हें डसा नहीं। कुछ नजदीक आकर देखा तो सर्प बिल्कुल शान्त होकर बैठा है। सारे शहर में यह बात प्रसिद्ध हो जाने से सैकड़ों व्यक्ति उसकी पूजा व अर्चना के लिए आने लगे। दूध, खाण्ड, मेवे मिष्ठान आदि चढ़ने लगे। उन पदार्थों की गन्ध से अनेक चींटियाँ जमा हो गईं। सर्प के शरीर को चाटने लगीं। उसने इस असह्य वेदना को समभाव से सहा। क्रोध नहीं किया। समता व क्षमा के प्रभाव से वह देव योनि में उत्पन्न हुआ।
जिस व्यक्ति ने क्रोधावेश में साधु जीवन को बिगाड़ा था, उसी जीव ने तिर्यञ्चगति में समता के झूले में झूलकर अपने जीवन को सुधारा, यह है समता का साकार सुफल|
समता के सद्भाव से, 
शत्रु मित्र साकार। 
'मुनि कन्हैया' क्रोध से, 
निश्चित अमित बिगाड़।
          *आभार* 
 *पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट* 
        *अहमदाबाद* 
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*ज्ञानसागर ग्रंथमाला* *महात्मा शंखेश्वरदास* *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला*  
   *महात्मा शंखेश्वरदास* 
 *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )
घोबी के घर एक गधा रहता था। जब वह रेंकता तब उसकी आवाज शंख ध्वनि जैसी होती थी। इसलिए धोबी ने उसका नाम 'शंखेश्वरदास' रख दिया। काफी काम देता था। जिससे धोबी को वह बहुत ही अच्छा एवं प्रिय लगता था। अचानक एक दिन गधा मर गया, इसलिए धोबी को बड़ा दुःख हुआ। चेहरे पर उदासी छा गई। हाय हाय करने लगा और नाई को बुलाकर कहा - "भाई परम योगीराज महान् आत्मा श्री शंखेश्वरदास का आज स्वर्गवास हो गया। अतः मुझे भद्र बना दो।" नाई ने उस्तरा लेकर धोबी का सिर मुंड दिया। नाई अपने घर आया और सोचने लगा धोबी भद्र बना है तो मुझे भी महात्मा जी के स्वर्गवास के उपलक्ष में भद्र बनना चाहिए। नाई भद्र बनकर कोतवाल के घर किसी काम के लिए चला गया। कोतवाल ने पूछा - नाई ! आज सिर क्यों मुंडाया है? क्या बात है ?"नाई (आश्चर्य से) --- "क्या आपको अभी तक पता ही नहीं है?"
कोतवाल - "मुझे तो कुछ भी मालूम नहीं है। बताओ किसका स्वर्गवास हुआ ?"नाई - "सुप्रसिद्ध महात्मा शंखेश्वरदास का आज देहावसान हो गया, अतः मैं भद्र बना हूँ।"कोतवाल - "क्या शंखेश्वरदास कोई बड़े महात्मा थे ?"नाई - "हाँ, बड़े त्यागी तपस्वी महात्मा थे।"कोतवाल - "तब तो अवश्य उनका शोक मनाना चाहिए। भाई। मुझे भी भर बना दो।"कोतवाल सिर मुंडाकर राज दरबार में गया।राजा ने पूछा - "कोतवाल । भद्र कैसे बना? क्या बात हुई?"
कोतवाल - "राजन् । आप नगर के स्वामी हैं। ऐसी दुःखप्रद, हृदय विदारक घटनाओं से भी आप अज्ञात रहते हैं। परम तपस्वी महात्मा शंखेश्वरदास का स्वर्गवास हो गया है इसलिए मैंने सिर मुंडाया है।"
राजा ने भी नाई को बुलाकर सिर मुंडा लिया और समस्त शहर में घोषणा करवा दी - "महात्मा शंखेश्वरदास के स्वर्गवास के उपलक्ष में समस्त बाजार, स्कूलें तथा सरकारी कार्यालय बन्द रखें। शाम को सात बजे राजा जी की अध्यक्षता में एक शोक सभा मनाई जायेगी।" राजा की आज्ञा से सारे शहर में शोक मनाया गया। लोगों में भेड़चाल होती ही है। अनेकों अनुकरणप्रिय लोगों ने सिर मुंडा लिया। लेकिन वास्तविक तथ्य की खोज किसी ने भी नहीं की। शाम को नृपति की अध्यक्षता में शोक सभा हुई। हजारों महानुभावों ने भाग लिया। बाहर गया हुआ मन्त्री अचानक उसी सभा में आ पहुँचा। राजा आदि अनेकों को भद्र देखकर मंत्री सहम गया। यह क्या बात है ? राजा आदि अनेकों प्रतिष्ठित व्यक्ति सिर को मुंडाकर कैसे बैठे हैं? राजा ने कहा - "मंत्री । चौकने की कोई बात नहीं है। महात्त्मा शंखेश्वरदास का स्वर्गवास हो गया, इसलिए हम भद्र बने हैं और उनकी शोक सभा मना रहे है।"
मंत्री - "शखेश्वरदास कौन थे ?"
राजा - "कोई महात्मा होगें।
मंत्री - "उन्होंने कौन से शहर में समाधि ली ?"राजा - "यह तो हमें पता नहीं। कोतवाल के कथनानुसार हमने यह सब किया है।" मंत्री ने क्रमशः कोतवाल और नाई को बुलाया और उन्हें पूछा - "वह शंखेश्वरदास कौन थे?" उन्होंने कहा हमें पता नहीं, धोबी जानता है।" धोबी को बुलाकर पूछा गया। धोबी ने हाथ जोड़कर कहा - मन्त्रीवर । शंखेश्वरदास न कोई योगी थे और न कोई महात्मा। वह था मेरे काम आने वाला प्राण प्रिय 'गधा'। यह सुनते ही सबकी आँखें खुल गई। दाँतों में अंगुलियाँ आ गई। सबके सिर नीचे झुक गये। हाय ! बिना सोचे - विचारे भद्र बन गए। राजा भी पुनः पुनः पश्चाताप करने लगे। पर अब क्या था ?
आज का युग भी भेड़चाल की तरह आगे बढ़ रहा है। वास्तविक तथ्य का विचार किये बिना ही हर किसी का अनुसरण करने लग जाते हैं परन्तु जो व्यक्ति बिना सोचे - समझे काम करते हैं उन्हें आखिर में पश्चाताप करना पड़ता है।
बिना विचारे मत करो, 
कभी तनिक भी कार्य। 
नरपति पछताता रहा, 
मुंडित होकर आर्य ।।
          *आभार* 
 *पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट*   
        *अहमदाबाद*

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला* *कुछ तुम समझे* , *कुछ हम समझे** **लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला* 
    *कुछ तुम समझे* , 
    *कुछ हम समझे** 
 **लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )
एक बुढ़िया थी। शहर से कुछ सौदा खरीदकर अपने गाँव की ओर रवाना हुई। अधिक थकान होने से वह मार्ग में बैठ गई। उसी मार्ग से एक घुड़सवार जा रहा था। बुढ़िया ने घुड़सवार से कहा "बेटे ! जरा ठहरो, मेरी बात सुनो।
घुड़सवार बोला - "माँ जी। जल्दी बोलो, क्या काम है? मुझे अमुक गाँव में शीघ्रता से पहुँचना है।"
मीठी वाणी में बुढ़िया ने कहा - "बेटे जिस गाँव में तुम जा रहे हो, उसी गाँव में मुझे जाना है। मैं वृद्धा हूँ। मेरे घुटनों में काफी दर्द हो रहा है। अधिक वजन लेकर चल नहीं सकती। इसलिए तुम मेरे सामान की गठरी घोड़े पर ले जाओ। घर पहुँचा देना। तुम्हारा उपकार नहीं भूलूँगी।"
घुड़सवार ने सुनककर बोला - "माँ जी। मार्ग में अनेको व्यक्ति मिलते हैं किस - किसका समान ले जाया जाए। मेरे से यह काम नहीं होता।" यों कहता हुआ घुड़सवार आगे बढ़ गया।
कुछ ही दूरी पर घुड़सवार के मन में आया आज तो अच्छा अवसर आया था हाथ में। भोलेपन में यों ही गंवा दिया। गठरी हजम करने का बहुत हीअच्छा मौका था। वह वापस मुड़ा। बुढ़िया के पास आया और मीठे शब्दों में बोला - मैं कुछ ही दूर गया, पर मेरे से चला नहीं गया। मन में मंथरता उत्पन्न हो गई। विचार बदले। मैंने सोचा वृद्ध माँ जी को निराश करना व्यवहार में अच्छा नहीं है। इसलिए गठरी लेने वापस आया हूँ। घोड़े पर रख लूँ। तुम्हारे घर पहुँचा दूँगा।"
बुढ़िया हँसकर बोली - "क्या है? समय निकल गया। अब नहीं दूँगी। कुछ तुम समझे, कुछ हम समझे।"
घुड़सवार चकित हुआ और बोला- "माँ जी ! ऐसे कैसे कह रही हो ? क्या हुआ।"
बुढ़िया ने कहा - "उस समय तुम्हारे विचार शुद्ध थे। इसी कारण मुझे भी गठरी देनें की सूझी थी। अब तुम्हारे मस्तिष्क में विकृति उत्पन्न हो गई। विचारों में स्वच्छता नहीं रही। मन में पाप भर गया। अनीति आ गई। उस अनीति का असर मेरे पर भी आ गया। मैं धोखा नहीं खाऊँगी, अतः अब अपना सामान देना नहीं चाहती, स्वयं ले जाऊँगी। तुम्हारे विचार बदले तो मेरे भी विचार बदल गये।"
मानसिक विचार - शक्ति का प्रभाव दूसरों पर बहुत जल्दी पड़ता है। जिस व्यक्ति की भली अथवा बुरी जैसी भी विचारधारा होगी, सामने वाले की वैसी ही बन जायेगी। अतः हर व्यक्ति को अपनी विचारधारा पवित्र रखनी चाहिए।
कुछ तुम समझे हृदय में,
 कुछ हम समझे अद्य। 
बुरे विचारों का असर, 
मन पर पड़ता सद्य ।।
          *आभार* 
 *पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट* 
         *अहमदाबाद*

ज्ञानसागर ग्रंथमाला* *दुर्जन का संग* *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल )*

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला* 
          *दुर्जन का संग* 
 *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल )* 

एक हंस और एक कौवे में एक बार अच्छी दोस्ती हो गई। गगन विचरण करते हुए दोनों एक वृक्ष पर जा बैठे। प्रेमपूर्वक दोनों बातें करने लगे। किन्तु स्वभाव से दोनों अलग - अलग थे। हंस की गतिविधि सज्जन जैसी थी और कौवे की दुर्जन जैसी। अचानक उसी वृक्ष की शीतल छाया में विश्राम लेने के लिये थका हुआ एक मुसाफिर आ गया। वह अपनी चादर बिछाकर सो गया। श्रान्त होने के कारण सहसा गहरी नींद आ गई। वृक्ष पर बैठे हुए हंस ने देखा कि पथिक के बदन पर सूर्य की कुछ किरणें पड़ रही हैं। तीव्र ताप के कारण इसकी नींद टूट जायेगी। इस कारण हंस अपनी पाँखें फैलाकर बैठ गया। सारी धूप उसके पंखों पर समाहित हो गई। यह बात कौवे को अच्छी नहीं लगी। उसने सोचा - हंस बिल्कुल भोला है। पथिक की चिन्ता में खुद कितना ताप सह रहा है। पथिक को आराम क्यों देता है? उसके सुख को पचा नहीं सकने के कारण कौवे ने मुसाफिर के मुख पर विष्ठा कर दी।
पथिक की आँखे खुलीं। सोचा - यह दुश्मन कौन ? पंख फैलाए हुए हंसको देखते ही वह तो आग - बबूला हो गया। मलकर्ता उसी हंस को समझकर उसने गोली से उसके प्राण पखेरू उड़ा दिये। दुर्जन के संग से हंस को बिना मौत मरना पड़ा।
दुर्जन का संग कभी भी सुखद नहीं होता है। सज्जन का संग सर्वदा लाभप्रद होता है। 'जैसा संग वैसा रंग' जैसा संग मिलेगा वैसा ही रंग चढ़ जायेगा। अतः हर एक को दुष्ट मनुष्यों की संगति से दूर रहना चाहिए।
दुर्जन कौवे - संग से, 
मरा बेचारा हंस। 
सज्जन संगति से मनुज,
 बनता जग - अवतंस।।
            *आभार* 
 *पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट*   
        *अहमदाबाद*

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