*ज्ञानसागर ग्रंथमाला* *महात्मा शंखेश्वरदास* *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )

*ज्ञानसागर ग्रंथमाला*  
   *महात्मा शंखेश्वरदास* 
 *लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )
घोबी के घर एक गधा रहता था। जब वह रेंकता तब उसकी आवाज शंख ध्वनि जैसी होती थी। इसलिए धोबी ने उसका नाम 'शंखेश्वरदास' रख दिया। काफी काम देता था। जिससे धोबी को वह बहुत ही अच्छा एवं प्रिय लगता था। अचानक एक दिन गधा मर गया, इसलिए धोबी को बड़ा दुःख हुआ। चेहरे पर उदासी छा गई। हाय हाय करने लगा और नाई को बुलाकर कहा - "भाई परम योगीराज महान् आत्मा श्री शंखेश्वरदास का आज स्वर्गवास हो गया। अतः मुझे भद्र बना दो।" नाई ने उस्तरा लेकर धोबी का सिर मुंड दिया। नाई अपने घर आया और सोचने लगा धोबी भद्र बना है तो मुझे भी महात्मा जी के स्वर्गवास के उपलक्ष में भद्र बनना चाहिए। नाई भद्र बनकर कोतवाल के घर किसी काम के लिए चला गया। कोतवाल ने पूछा - नाई ! आज सिर क्यों मुंडाया है? क्या बात है ?"नाई (आश्चर्य से) --- "क्या आपको अभी तक पता ही नहीं है?"
कोतवाल - "मुझे तो कुछ भी मालूम नहीं है। बताओ किसका स्वर्गवास हुआ ?"नाई - "सुप्रसिद्ध महात्मा शंखेश्वरदास का आज देहावसान हो गया, अतः मैं भद्र बना हूँ।"कोतवाल - "क्या शंखेश्वरदास कोई बड़े महात्मा थे ?"नाई - "हाँ, बड़े त्यागी तपस्वी महात्मा थे।"कोतवाल - "तब तो अवश्य उनका शोक मनाना चाहिए। भाई। मुझे भी भर बना दो।"कोतवाल सिर मुंडाकर राज दरबार में गया।राजा ने पूछा - "कोतवाल । भद्र कैसे बना? क्या बात हुई?"
कोतवाल - "राजन् । आप नगर के स्वामी हैं। ऐसी दुःखप्रद, हृदय विदारक घटनाओं से भी आप अज्ञात रहते हैं। परम तपस्वी महात्मा शंखेश्वरदास का स्वर्गवास हो गया है इसलिए मैंने सिर मुंडाया है।"
राजा ने भी नाई को बुलाकर सिर मुंडा लिया और समस्त शहर में घोषणा करवा दी - "महात्मा शंखेश्वरदास के स्वर्गवास के उपलक्ष में समस्त बाजार, स्कूलें तथा सरकारी कार्यालय बन्द रखें। शाम को सात बजे राजा जी की अध्यक्षता में एक शोक सभा मनाई जायेगी।" राजा की आज्ञा से सारे शहर में शोक मनाया गया। लोगों में भेड़चाल होती ही है। अनेकों अनुकरणप्रिय लोगों ने सिर मुंडा लिया। लेकिन वास्तविक तथ्य की खोज किसी ने भी नहीं की। शाम को नृपति की अध्यक्षता में शोक सभा हुई। हजारों महानुभावों ने भाग लिया। बाहर गया हुआ मन्त्री अचानक उसी सभा में आ पहुँचा। राजा आदि अनेकों को भद्र देखकर मंत्री सहम गया। यह क्या बात है ? राजा आदि अनेकों प्रतिष्ठित व्यक्ति सिर को मुंडाकर कैसे बैठे हैं? राजा ने कहा - "मंत्री । चौकने की कोई बात नहीं है। महात्त्मा शंखेश्वरदास का स्वर्गवास हो गया, इसलिए हम भद्र बने हैं और उनकी शोक सभा मना रहे है।"
मंत्री - "शखेश्वरदास कौन थे ?"
राजा - "कोई महात्मा होगें।
मंत्री - "उन्होंने कौन से शहर में समाधि ली ?"राजा - "यह तो हमें पता नहीं। कोतवाल के कथनानुसार हमने यह सब किया है।" मंत्री ने क्रमशः कोतवाल और नाई को बुलाया और उन्हें पूछा - "वह शंखेश्वरदास कौन थे?" उन्होंने कहा हमें पता नहीं, धोबी जानता है।" धोबी को बुलाकर पूछा गया। धोबी ने हाथ जोड़कर कहा - मन्त्रीवर । शंखेश्वरदास न कोई योगी थे और न कोई महात्मा। वह था मेरे काम आने वाला प्राण प्रिय 'गधा'। यह सुनते ही सबकी आँखें खुल गई। दाँतों में अंगुलियाँ आ गई। सबके सिर नीचे झुक गये। हाय ! बिना सोचे - विचारे भद्र बन गए। राजा भी पुनः पुनः पश्चाताप करने लगे। पर अब क्या था ?
आज का युग भी भेड़चाल की तरह आगे बढ़ रहा है। वास्तविक तथ्य का विचार किये बिना ही हर किसी का अनुसरण करने लग जाते हैं परन्तु जो व्यक्ति बिना सोचे - समझे काम करते हैं उन्हें आखिर में पश्चाताप करना पड़ता है।
बिना विचारे मत करो, 
कभी तनिक भी कार्य। 
नरपति पछताता रहा, 
मुंडित होकर आर्य ।।
          *आभार* 
 *पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट*   
        *अहमदाबाद*

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