*ज्ञानसागर ग्रंथमाला* *कुछ तुम समझे* , *कुछ हम समझे** **लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )
*ज्ञानसागर ग्रंथमाला*
*कुछ तुम समझे* ,
*कुछ हम समझे**
**लेखक ( मुनि कन्हैयालाल* )
एक बुढ़िया थी। शहर से कुछ सौदा खरीदकर अपने गाँव की ओर रवाना हुई। अधिक थकान होने से वह मार्ग में बैठ गई। उसी मार्ग से एक घुड़सवार जा रहा था। बुढ़िया ने घुड़सवार से कहा "बेटे ! जरा ठहरो, मेरी बात सुनो।
घुड़सवार बोला - "माँ जी। जल्दी बोलो, क्या काम है? मुझे अमुक गाँव में शीघ्रता से पहुँचना है।"
मीठी वाणी में बुढ़िया ने कहा - "बेटे जिस गाँव में तुम जा रहे हो, उसी गाँव में मुझे जाना है। मैं वृद्धा हूँ। मेरे घुटनों में काफी दर्द हो रहा है। अधिक वजन लेकर चल नहीं सकती। इसलिए तुम मेरे सामान की गठरी घोड़े पर ले जाओ। घर पहुँचा देना। तुम्हारा उपकार नहीं भूलूँगी।"
घुड़सवार ने सुनककर बोला - "माँ जी। मार्ग में अनेको व्यक्ति मिलते हैं किस - किसका समान ले जाया जाए। मेरे से यह काम नहीं होता।" यों कहता हुआ घुड़सवार आगे बढ़ गया।
कुछ ही दूरी पर घुड़सवार के मन में आया आज तो अच्छा अवसर आया था हाथ में। भोलेपन में यों ही गंवा दिया। गठरी हजम करने का बहुत हीअच्छा मौका था। वह वापस मुड़ा। बुढ़िया के पास आया और मीठे शब्दों में बोला - मैं कुछ ही दूर गया, पर मेरे से चला नहीं गया। मन में मंथरता उत्पन्न हो गई। विचार बदले। मैंने सोचा वृद्ध माँ जी को निराश करना व्यवहार में अच्छा नहीं है। इसलिए गठरी लेने वापस आया हूँ। घोड़े पर रख लूँ। तुम्हारे घर पहुँचा दूँगा।"
बुढ़िया हँसकर बोली - "क्या है? समय निकल गया। अब नहीं दूँगी। कुछ तुम समझे, कुछ हम समझे।"
घुड़सवार चकित हुआ और बोला- "माँ जी ! ऐसे कैसे कह रही हो ? क्या हुआ।"
बुढ़िया ने कहा - "उस समय तुम्हारे विचार शुद्ध थे। इसी कारण मुझे भी गठरी देनें की सूझी थी। अब तुम्हारे मस्तिष्क में विकृति उत्पन्न हो गई। विचारों में स्वच्छता नहीं रही। मन में पाप भर गया। अनीति आ गई। उस अनीति का असर मेरे पर भी आ गया। मैं धोखा नहीं खाऊँगी, अतः अब अपना सामान देना नहीं चाहती, स्वयं ले जाऊँगी। तुम्हारे विचार बदले तो मेरे भी विचार बदल गये।"
मानसिक विचार - शक्ति का प्रभाव दूसरों पर बहुत जल्दी पड़ता है। जिस व्यक्ति की भली अथवा बुरी जैसी भी विचारधारा होगी, सामने वाले की वैसी ही बन जायेगी। अतः हर व्यक्ति को अपनी विचारधारा पवित्र रखनी चाहिए।
कुछ तुम समझे हृदय में,
कुछ हम समझे अद्य।
बुरे विचारों का असर,
मन पर पड़ता सद्य ।।
*आभार*
*पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट*
*अहमदाबाद*
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