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PERSONALITY DEVELOPMENT [HINDI]
हम जिस प्रकार के व्यक्ति हैं,वही हमारा व्यक्तित्व है और वह हमारे आचरण संवेदनशीलता तथा विचारों से व्यक्त होता है।
लोंगमेन के शब्दकोष में कहा गया है की 'किसी व्यक्ति का पूरा स्वभाव तथा चरित्र ही व्यक्तित्व कहलाता है।
परिभाषाएँ तो अनेक हैं पर मेरे अनुसार व्यक्तित्व का कुछ सम्बन्ध तो अभिवावक पर निर्भर होता है था शेष का निर्माण समाज कर देता है।
किसी व्यक्ति की वाह्य आकृति उसके व्यक्तित्व को सही रूप से परिभाषित नहीं करती। विशेष परिस्थति में उसका व्यवहार ही उसके व्यक्तित्व को दर्शाता है।
इच्छाशक्ति को सबल बनाना ही हमारे व्यक्तित्व विकास का सार है। व्यक्तित्व विकास के पांच गुण होते हैं जैसे
१. अपने आप में विकास
२.सकारात्मक विचार अपनाना
३. असफलताओं के प्रति चिंतन
४.आत्मनिर्भरता
५.त्याग और सेवा
जिस प्रकार पानी का बुलबुला झील के तल से निकल कर जब ऊपर आकर फूटता है तभी हमे दीखता है उसी
प्रकार हमारे विचार अधिक विकसित होने पर या कार्य में परिणत होने पर ही दीखते हैं।
इसका अर्थ ये हुआ की हम अपने विचार से कोई कार्य प्रारम्भ करते है तब उसका परिणाम ही विचार का स्तर बता सकता है।
किसी व्यक्ति के चरित्र की जांच करने के लिए उसके बड़े कार्यों की जांच कभी नहीं करनी करें क्योंकि कभी कभी मुर्ख भी बहादुरी का कार्य कर देता है वास्तव में महान तो वही है जो हर समय बड़प्पन दिखाता है और बहादुर वो है जो हर समय बहादुर ही रहता है।
संसार में जो हम देख रहें है वो सब हमारे इच्छाशक्ति का ही प्रकाश है। हमें अपने नकारात्मक भावों को सयमित करना ही होगा। हमे सर्वप्रथम खुद को ही बदलना होगा ; दूसरों पर व्यर्थ दोषारोपण करना त्यागना होगा। यदि हम पर्वत की गुफा में बैठ कर तपस्या का ढोंग कर रहें है और वहां पर पापाचार चिंतन ; किसी का अहित सोंच भी रहें हैं तो ये सब भविष्य में हमारे सामने आएंगे और हमे ही कष्ट देंगे।
अपनी वर्तमान व्यवस्था के जिम्मेदार हम ही हैं ; पर इससे उबरने की शक्ति भी हमारे अंदर ही है जो हमे ज्ञात नहीं ,इस शक्ति को ही हमें बाहर लाना होगा।
हमे वही मिला है जिसके हम पात्र हैं। हम पर कोई भी आपत्ति ऐसी नहीं थी जिसके हम पात्र नहीं थे। अगर हम सुख के पात्र हो सकते हैं तो दुःख के क्यों नहीं। बस ये ही समझ का फेर हो जाता है और हम अपनी किस्मत को कोसते फिरते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी से अनेक लोगों ने प्रश्न किआ था की कार्य के पीछे रानी वाला आवेग समाप्त हो जाये तो क्या होगा ? स्वामी जी के अनुसार कार्य के प्रति जितना आवेग कम रहता है वो उतना ही उत्कृस्ट और श्रेष्ठ होता है। शांत मन से किये गए कार्य से ही आत्म कल्याण होता है।
जब हम भावनाओं के अधीन हो जाते हैं तब हम अपनी शक्ति का अपव्यय करते हैं ; अपने मानसिक संतुलन को भी प्रभावित करते हैं पर काम कर पाते हैं। ये सब मेरा खुद का अनुभव है।
याद रखें दुर्बलता ही मृत्यु के समान है। कमजोर किसी भी लोक में रहने लायक नहीं है. यंहा शक्ति को शारीरिक रूप से नहीं लिया गया। शारीरिक रूप से ताकतवर व्यक्ति मानसिक रूप से दुर्बल हो सकता है अतः हम को मानसिक रूप से दुर्बलता का त्याग करना ही होगा।
इस प्रकार हम व्यक्तित्व विकास कर सकते है। [ यह लेख स्वामी विवेकानंद जी के विचार जो की व्यकतित्व का विकास नामक पुस्तक में दिए गए है उनका सम्पादित अंश है ]
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